उड़ जाती सुख चिड़िया फुर्र से
सुख के पीछे दौड़ लगाते
किन्तु हम दुःख ही ले आते,
उड़ जाती सुख चिड़िया फुर्र से
हाथों को मलते रह जाते !
बाहर सुख की आशा रखना
चाहें हम बस भ्रम में रहना,
कभी स्मृति, कभी कल्पना
वर्तमान से नजर फेरना !
बीत न जाये यह पल सुख है
काल का नन्हे से नन्हा क्षण,
जिसने इसको जीना सीखा
भर जाता आनंद से तत्क्षण !
महाकाल कहलाता है जो
सहज बाँटता है उल्लास,
जाग गया जो पल में उसको
भर-भर झोली मिले उजास !
यही नाम, यही हुकुम रजाई
नियम यही ऋत, सत्य यही है,
वर्तमान ने दे संदेसे
उसी लोक की कथा कही है !
अनिता निहालानी
११ जनवरी २०११
बाहर सुख की आशा रखना
जवाब देंहटाएंचाहें हम बस भ्रम में रहना,
कभी स्मृति, कभी कल्पना
वर्तमान से नजर फेरना !
ठीक लिखा है -
पर मन कल्पना किये बिना मनाता कहाँ है ?
सुख-दुःख सब अन्दर है ,बाहर कुछ नहीं
जवाब देंहटाएंवर्तमान ने दे संदेसे उसी लोक की कथा कही है !--
जवाब देंहटाएंकहकर तुमने तो क्या खूब कविता कही है.बस हमेशा याद रहनी चाहिये.
डर लग रहा है कि कहीं छोटा मुह बड़ी बात ना हो जाए, आपकी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर और आध्यात्मिक रंग लिए होती हैं लेकिन पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि ये और भी सुन्दर हो सकती थी!
जवाब देंहटाएंआपका अनुभव सौ प्रतिशत सच है ये कवितायें और भी अच्छी हो सकती हैं क्योंकि जो मैं कहना चाह रही हूँ वह शब्दों के दायरे में नहीं समाता,वह अनुपम है, अति सुंदर है और यदि आपका इशारा छंद मात्रा आदि की ओर है तो मैंने कभी साहित्य विषय लेकर नहीं पढ़ा, जो भी यहाँ है वह कृपा का प्रसाद है !
जवाब देंहटाएंप्रिय दीदी, बहुत दिनों बाद आपकी उपस्थिति अच्छी लग रही है, वर्तमान भूलने की चीज नहीं फिर भी कोई याद नहीं रख पाता !
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ........आपकी टिपण्णी में जो आपने कहा उससे मैं बिलकुल सहमत हूँ.....जो शब्दों में व्यक्त नहीं होता है वही तो सत्य है......अनहत नाद गूंजता है...जो हर किसी को सुनाई नहीं देता .....शब्दों की भी सीमा होती है....और सत्य तो सीमाओं से परे है......अव्यक्त है.......बहुत ही सुन्दर....मुझे लगा...फुर की जगह फुर्र होना चाहिए था......शुभकामनायें|