तुम्हारे कारण
यह जीवन यदि सुंदर स्वप्न सलोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
इस मन का हर ख्वाब यूँ ही सच होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
बरसों बीते सँग सँग चलते, नया नया सा लगता हर दिन
कैसे कटता सफर अकेले, रहते कैसे हम तुम बिन
भरा हुआ भावों से इस दिल का हर कोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
सहज प्रेम तुमने बरसाया, पूरा का पूरा अपनाया
भुला दिया सारी भूलों को, प्रतिपल नव विश्वास दिलाया
नहीं कभी यह बंधन अब ढीला होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
नयनों से कह दीं बातें, जब अधर कभी सकुचाए
दिल ने दिल का हाल सुना, जब श्रवण नहीं सुन पाए
इस उर को मुस्काना हर पल कभी नहीं रोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
नहीं कुरेदा कमियों को, बस आदर्शों की ओर बढ़ाया
छूट गयी सारी अकुलाहट, सँग सँग हमने कदम उठाया
दो से एक बनें अब हर बार यही होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
साथ तुम्हारा अनुपम तोहफा, कुदरत ने जो बख्शा
नहीं उऋन हो पायेगें, न होने की अभिलाषा
पाया जो भी शुभ हमने नहीं उसे खोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
दीप दीप से जलता ऐसे, प्रेम से प्रेम उपजता
प्रेम तुम्हारा ही अंतर में, मेरा बन कर सजता
इसी प्रेम को हर क्षण तुम पर अब अर्पित होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
आँखों की चमक, अधरों की हँसी, प्रेम का ही प्रतिबिम्बन
मनः ऊर्जा, कर्म की शक्ति, इसी प्रेम के कारण
हम दोनों के मध्य यही कोई और नहीं होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
अनिता निहालानी
६ जनवरी २०११
ऊर्जा, कर्म की शक्ति, इसी प्रेम के कारण हम दोनों के मध्य यही कोई और नहीं होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भावपूर्ण प्रेममयी अभिव्यक्ति -
मन को छू गयी -
शुभकामनाएं
bhavon ke moti aapne apni kavita ke madhayam se bahut sundarta ke sath sajaye hain .badhai.
जवाब देंहटाएंदीप दीप से जलता ऐसे, प्रेम से प्रेम उपजता
जवाब देंहटाएंप्रेम तुम्हारा ही अंतर में, मेरा बन कर सजता ...
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा जैसे भाव दिख गए इस कविता में ...सब कुछ है प्रिय बस तेरे कारन ...
सुन्दर एहसासों से सजी कविता !
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है......सूफियाना दर्शन दिखा मुझे आपकी इस कविता में.....
अनीता जी बहुत सुन्दर भावपूर्ण लिखा है आपने.. आपकी रचना आज चर्चामंच पर है.. http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_07.html
जवाब देंहटाएंआपका आभार
आप सभी का आभार ! इमरान जी,प्रेम ही तो सूफियों का धर्म है न ?
जवाब देंहटाएंबिलकुल अनीता जी प्रेम तो सबसे बड़ा धर्म है.....सूफियाना इसीलिए कहा था मैंने क्योंकि सूफी परमात्मा का वर्तन प्रेयसी की तरह करते हैं.....वक़्त मिले
जवाब देंहटाएंतो जज़्बात पर मेरी नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े|
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना । आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसासों से सजी कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
ekdam mithi-mithi kavita.
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