शुक्रवार, जनवरी 21

बिखरा दें, फिर मुस्का लें

बिखरा दें, फिर मुस्का लें

खाली कर दें अपना दामन
जग को सब कुछ दे डालें,  
प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के
बिखरा दें, फिर मुस्का लें !

तन की दीवारों के पीछे
मन मंदिर की गहन गुफा से,
जगमग दीप उजाला जग में
फैला दें, फिर मुस्का लें !

अंतर्मन की गहराई में
अनुपम नाद सदा गूंजता,
चुन चुन कर मधु गुंजन जग में
गुंजा दें, फिर मुस्का लें !

भीतर बहते अमृत घट जो 
प्याले भर भर उर पाता,
अमिसरिस रस धार जगत में
लहरा दें, फिर मुस्का लें !

हुआ सुवासित तन-मन जिससे
भीतर जिसके भरे खजाने,
सुरभि सुगन्धित पावन सुखमय
छितरा दें, फिर मुस्का लें !

अनिता निहालानी
२१ जनवरी २०११ 

4 टिप्‍पणियां:

  1. हुआ सुवासित तन-मन जिससे
    भीतर जिसके भरे खजाने,
    सुरभि सुगन्धित पावन सुखमय
    छितरा दें, फिर मुस्का लें !

    गहन जीवन दर्शन से परिपूर्ण प्रेरक रचना. बहुत भावपूर्ण

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  2. बहुत सुन्दर रचना......ये पंक्ति सबसे अच्छी लगी -

    खाली कर दें अपना दामन
    जग को सब कुछ दे डालें,
    प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के
    बिखरा दें, फिर मुस्का लें !

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  3. खाली कर दें अपना दामन जग को सब कुछ दे डालें, प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के बिखरा दें, , फिर मुस्का लें !



    बहुत ही सकारात्मक भाव लिए हुए -
    बहुत सुंदर कोमल भावमयी रचना -
    बधाई एवं शुभकामनायें

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  4. प्रेरणा देती पोस्ट.
    खाली कर दें अपना दामन जग को सब कुछ दे डालें,
    प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के बिखरा दें, फिर मुस्का लें !
    मुस्करा ही दें तो कुछ समस्याएँ ऐसे ही हल हो जाती हैं

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