मौन मात्र पर अपना हक है
एक हवा का झोंका आकर
पश्चिम वाली खिड़की खोले,
दिखी झलक मनहर फूलों की
हिला गया पर्दा जोरों से !
पूरब वाले वातायन से
देखो पवन झंकोरा आया,
सँग सुवास मालती की ला
झट कोना-कोना महकाया !
एक लहर भीतर से आयी
कोई आतुर मन अकुलाया,
एक ख्याल कहीं से आया
देखो उसका उर उमगाया !
हवा नशीली कभी लुभाती
तप्त हुई सी कभी जलाती,
लेकिन उस पर जोर है किसका
हुई मस्त वह रहे सताती !
ऐसे ही तो ख्यालात हैं
जिनकी भीड़ चली आती है,
जरा एक को पुचकारो तो
सारी रेवड़ घुस आती है !
पहले जो अहम् लगते थे
अब उन पर हँसी आती है,
ऐसे दलबदलू के हाथों
क्या लगाम फिर दी जाती है !
मौन मात्र पर अपना हक है
सदा एकरस, सदा मीत ये,
उसमें रह कर देखें जग को
बढ़ती रहे नवल प्रीत ये !
इसी लिए तो मौनव्रत की अपनी महिमा है.कहते हैं न-एक चुप सौ सुख .
जवाब देंहटाएंऐसे ही तो ख्यालात हैं
जवाब देंहटाएंजिनकी भीड़ चली आती है,
जरा एक को पुचकारो तो
सारी रेवड़ घुस आती है !
साचा है विचारों की एक भीड़ ही तो हमने जमा कर रखी है.......बहुत ही सुन्दर पोस्ट|
पहले जो अहम् लगते थे
जवाब देंहटाएंअब उन पर हँसी आती है,
ऐसे दलबदलू के हाथों
क्या लगाम फिर दी जाती है !
बहुत गहरे अर्थ समेटे हैं यह पंक्तियाँ.
सादर
बहुत सुन्दर चिन्तन्।
जवाब देंहटाएंमौन मात्र पर अपना हक है
जवाब देंहटाएंसदा एकरस, सदा मीत ये,
उसमें रह कर देखें जग को
बढ़ती रहे नवल प्रीत ये !
बहुत सुन्दर .
पहले जो अहम् लगते थे
जवाब देंहटाएंअब उन पर हँसी आती है,
ऐसे दलबदलू के हाथों
क्या लगाम फिर दी जाती है !
यही तो हमारी मज़बूरी है | अच्छी रचना बधाई