सावन
पुलक उठी बादलों में
बूंद बन ढलक गयी,
ताप तप्त वसुंधरा
नीर पा संवर गयी !
दग्ध किया था हिया
पवन वह शरमा गयी,
रूप नया धर लेप
नेह का लगा गयी !
जी उठे तड़ाग, नद
कूप लबालब हुए,
पंछियों के बैन भी
मीत पा थम गए !
खिल उठे बहार बन
झुलस गए थे जो वन,
श्रावण की भेंट पा
जुड़े मन, जुड़े नयन !
बहुत सुन्दर ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
जुड़ गए मन ..
जवाब देंहटाएंजुड़ गए नयन...
मीठे बैन..
टप-टप बुंदीयन करके श्रवण ...!!
बहुत सुंदर रचना ..
खिल गया मन पढ़ कर ....
श्रावण की भेंट पा
जवाब देंहटाएंजुड़े मन, जुड़े नयन !
बहुत सुंदर रचना
बेहद उत्कृष्ट रचना है यह.
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
जवाब देंहटाएंकल 16/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!