शनिवार, फ़रवरी 9

उसी घड़ी में कुछ घट जाता


उसी घड़ी में कुछ घट जाता 



वक्त का दरिया बहता जाता
यूँ लगता कुछ कहता जाता !

कल का सूरज कहाँ खो गया
आयेगा जो किधर से आये,
अभी अभी था अभी हुआ मृत
किसी अतल में गुमता जाता !

दूर सितारों से गर देखें
धरा गेंद सी डोल रही है,
एक आवरण में लिपटी सी
भेद किसी के खोल रही है !

सब कुछ पल में थिर हो जैसे
समय की रेखायें मिट जाये,
एक सनातन सृष्टि मिलती
क्षण भर को गतियाँ थम जाएँ !

उसी घड़ी में कुछ घट जाता
वक्त का दरिया रुक मुस्काता !



10 टिप्‍पणियां:

  1. सब कुछ पल में थिर हो जैसे
    समय की रेखायें मिट जाये,
    एक सनातन सृष्टि मिलती
    क्षण भर को गतियाँ थम जाएँ !

    बस थमी ही रहें उसके बाद.....
    बहुत सुन्दर...!

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  2. एक पल में क्या से क्या हो जाता है, जो पास है वह खो जाता है, जो पास नहीं वह मिल जाता है... गहन भाव

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  3. बढ़िया गत्यात्मक गीत -वक्त का दरिया बहता जाता .

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  4. अभी “अभी” था अभी हुआ मृत
    किसी अतल में गुमता जाता !......... अद्भुत रचना... रसी का सुन्दर आवरण ओढ़े हुए .

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  5. वह तो कभी होने से रहे कि वक़्त का दरिया रुक जाए .. वह तो हर पल बहता जाता ...

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  6. एक पल बदलता है सृष्टि .....बहुत सुन्दर।

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  7. आप सभी का स्वागत व आभार !

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