ग्रीष्म
उफ़ !
उमस भरी यह रुत गर्मी की
भीगा-भीगा गात स्वेद से
नमी हवा में
नभ सूना, छुप गयी बदलियाँ
कहीं फिजां में
प्रातः काल सिमटा कुछ पल में
प्रथम पहर बदला दो-पहर में
नयनों को चुभती, धूप चिलकती
भाती छाया
बंद कपाट, ढके झरोखे
शीतलता बस बंद घरों में
श्रमिक, किसान सभी तपते पर
काम भला रुकता है कोई
सर पर बांधे गीला साफा
चले बेचने आलू कांदा...
सुन्दर शब्द चित्र सब्जीवाले रितु के संत्रास का।
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जवाब देंहटाएंसही कहा आपने जीवन भला किसीके लिए कहाँ रुका है कभी … बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत आभार रविकर जी
जवाब देंहटाएंवीरू भाई व संध्या जी, स्वागत व आभार !
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