सोमवार, जुलाई 21

झुका समपर्ण में जब मस्तक


झुका समपर्ण में जब मस्तक


सैकत पर लहरें सागर की
छोड़ चलीं ज्यों सीपी, शंख
उर के इस खाली दर्पण पर
स्मृतियों की बह गयी तरंग !

सेतु बनाया उन सुधियों को
सृजन किया इक भावालोक,
आवाहन कर प्राण प्रिय का
रचा महावर मिटाया शोक !

सुषमा अतुलित सुरति सुभग है
 सिंहावलोकन भी आवश्यक,
तब तब प्राण हुए आलोड़ित
झुका समपर्ण में जब मस्तक !


6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शब्दों में रहस्यात्मक अनुभूति - छायावादी युग याद आ गया !

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  2. यशोदा जी, कालीपद जी, प्रतिभा जी व संध्या जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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