गुरुवार, अगस्त 27

आसमान निर्मल अविकारी

 आसमान निर्मल अविकारी 

 

अंबर, अधर, व्योम,  नीलाम्बर 

गगन, अनंत, अविचल, अकम्पन,

अरबों, खरबों नक्षत्रों  को

निज अवकाश किया है धारण ! 

 

शून्यवत न होता परिभाषित 

धरती को द्यौ व्याप रहा है, 

नित प्रकाश रंगों से सजता  

निज का  कोई रंग नहीं है !

 

एक विशाल चँदोवे जैसा 

तारों से मंडित यह अनुपम, 

एक तत्व है सूक्ष्म अनश्वर 

रचता है जिसे स्वयं ईश्वर !

 

सभी नाद अगास  में होते 

वायु संग आकाश मिले जब, 

भीतर तन के बाहर मन के 

ठहरे इसमें दोनों तन-मन !

 

कभी घने बादल ढक लेते 

जैसे मन को ढके कुहासा, 

आसमान निर्मल अविकारी 

 चमके तड़ित या हो गर्जना !

 


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