मंगलवार, अगस्त 18

स्वप्न से जागरण तक

 स्वप्न से जागरण तक 

 

स्वप्न अचेतन गढ़ता है 

 है वह आँख जिससे 

झाँका जा सकता है भविष्य में 

वह दर्पण भी, जिसमें, अनजाना रह गया 

खुद से ही 

मन का वह कोना झलकता है !

स्वप्न कहते हैं हमारी अनकही गाथाएं 

भूली-बिसरी पुरातन कथाएं

जिनकी खुटियाँ अब भी गड़ी हैं 

मन के उस अंधकार में  

जहाँ हम जाते नहीं 

जा सकते नहीं 

या जाना चाहते नहीं 

स्वप्न में उभर आती हैं विवशताएँ 

जिन्हें दूर नहीं कर पाया मन 

वे आशाएं, नहीं कर पाया जिन्हें पूर्ण 

स्वप्न को स्वप्न कहकर भूल जाता 

फिर अगली रात वही प्रपंच रचाता 

स्वप्न में ही जागना होगा 

अन्यथा अतीत से सदा भागना होगा 

स्वप्नों के पार ही खुद से मुलाकात होगी 

फिर स्वयं से स्वयं की कुछ बात होगी ! 

 


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को    "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द"  (चर्चा अंक-3798)     पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. अपूर्ण इच्छाओं के स्वप्न आते रहते हैं पर उनके आगे भी जीवन होता है ... और उसी को पाना जीवन है ...

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