शनिवार, सितंबर 24

लहर उठी सागर से कोई

लहर उठी सागर से कोई


​​तू मुझमें ही वास कर रहा

या मैं तेरे घर हूँ आया ?

रहना-आना दोनों मिथ्या  

एक तत्व है कौन पराया !


लहर उठी सागर से कोई 

अगले पल उसमें जा खोयी, 

पल भर का इक नर्तन करके 

निज स्वरूप में जाकर सोयी !


मेरा होना तुझसे ही है 

तू ही मैं बनकर खेले है, 

एक तत्व अखंड  शाश्वत नित 

दिखते जीवन के मेले हैं !


दर्शक बनकर देख रहा तू 

कैसे माया लीला रचती, 

मन खुद  को सर्वस्व समझता   

अंतर को फिर व्याकुल करती !



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