अभी मिलन घट सकता उससे
ना अतीत जंगल के उगते
ना उपवन भावी के जिसमें,
वर्तमान का पुष्प अनोखा
खिलता उसी मरूद्यान में !
एक स्वप्न से क्या मिल सकता
जिससे ज़्यादा ना दे अतीत,
जाल कल्पना का भी मिथ्या
भावी के सदा गाता गीत !
एक बोझ का गट्ठर लादे
कितना कोई चल सकता है,
यादों का सैलाब डुबाता
भव सागर कब तर सकता है !
कल की फ़िक्र आज को खोया
संवरे अब बने कल सुंदर,
इस पल में हर राज छुपा है
पहचानें ! क्यों टालें कल पर !
अभी-अभी इक सरगम फूटी
अभी अभी बरसा है बादल,
अभी मिलन घट सकता उससे
है परे काल से सदा अटल !