नए वर्ष के लिये संकल्प
मन उपवन नित सजा रहे, न उगने पाए खर-पतवार
मंजिल की बाधा बन जाये, जमे न ऐसा कोई विचार
आशा के कुछ पुष्प उगायें, पोषण दे, ऐसा ही सोचें
कंटक चुन-चुन बीनें पथ से, सदा अशुभ को बाहर रोकें
प्रज्ञा की सुंदर बेल हो, दृढ़ इच्छा का वृक्ष लगे
प्रेम की धारा बहे सदा, बुद्धि, ज्योति बनी जगे
अपसंस्कृति को प्रश्रय न दें, सुसंस्कृति ही पनपे
तहस-नहस न हो मन उपवन, जीवन निशदिन महके
नया-नया सा नित विचार हो, भीतर ज्ञान की ललक उठे
जिज्ञासा जागृत हो मन में, जिजीविषा भी प्रबल रहे
रहे जागरण भीतर प्रतिपल, प्रतिपल श्रद्धा हो अर्जित
आगे ही आगे ही बढ़ना है, भीतर स्मृति हो वर्धित