इसलिए कुछ ठंड ज्यादा आज है
शीत लहरी है कंपाती हाड़ को
कटकटाते दांत जब पाला पड़े,
शाम से पहले धुंधलका छा गया
सूर्य निकले सर्दियों में दिन चढ़े !
धूप में तेजी नहीं बस कुनमुनी सी
बदलियों से डर गया रविराज है,
रात भर गरजा किये बादल घने
इसलिए कुछ ठंड ज्यादा आज है !
छुपे जन्तु शीत से पाने पनाह
चीटियाँ और छिपकली दिखती नहीं,
फूल बागों में ठिठुरते से खिले
घास भी कुम्हला गयी पीली पड़ी !
ओढ़ मफलर, स्कार्फ, टोपी, शॉल सब
चाय की चुस्की लगाते चल रहे हैं,
रेवड़ी, तिल, गजक बिकते थोक में
अलाव भी होड़ लेते जल रहे हैं !
अनिता निहालानी
३ फरवरी २०११
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है आपने ये रचना पोस्ट करने में थोड़ी देर कर दी है अब तो ठण्ड कम हो गयी है यहाँ दिल्ली में तो और शायद असम में भी| वैसे ठण्ड का बेहतरीन चित्रण किया है इस रचना में आपने....
जहाँ तक मुझे लगा शायद ये आपकी लोहड़ी की तस्वीर है......वैसे तस्वीर बहुत अच्छी लग रही है......आप सबसे कॉर्नर में हो न ?जहाँ कोई खड़ा है उसके पीछे....
शीत ऋतु का बहुत ही मनोहारी जीवंत शब्द चित्र..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंइमरान जी, असम में बारिश हो जाती है अक्सर और ठंड फिर से बढ़ जाती है,फोटो के बारे में आपका अनुमान सही है !
जवाब देंहटाएंbahut achchhi likhi hai kavita .kal bhi comment karne aap ke blog par aayi thi par kar nahi payi internet ki gadbadi ke karan .aap lgatar bahut achchha lekhan kar rahi hain .aise hi likhti rahiye .shubhkamnaye .
जवाब देंहटाएंकुछ ठंड ज्यादा आज है
जवाब देंहटाएंतभी तो इतनी सुंदर कविता लिखी हे धन्यवाद