शनिवार, फ़रवरी 5

पुण्य सम पावन यह प्यार


पुण्य सम पावन यह प्यार

अनसुनी जाने न पाए
मीत की कोई पुकार,
कौन जाने कब मिलेगी
झूमती गाती बहार !

कौन जाने कब खिलेगा
 पुण्य सम पावन यह प्यार !

आँख भर के देख लो
बूंद कितनी देर ठहरी,
सप्तवर्णी अमिय धारे
ज्यों मधुर संगीत लहरी !

हो तिरोहित पूर्व उसके
थाम लो बन जाओ धार !
कौन जाने कब खिलेगा?
 पुण्य सम पावन यह प्यार !

खोजने का तुम जिसे
कर रहे अभिनय युगों से,
पांव रखे हो उसी पे
बँध अदेखी बेड़ियों से !

खोल दृग देखो यदि तुम
जग किये सोलह सिंगार !
कौन जाने कब खिलेगा?
 पुण्य सम पावन यह प्यार !

अनिता निहालानी
५ फरवरी २०११







9 टिप्‍पणियां:

  1. खोजने का तुम जिसे
    कर रहे अभिनय युगों से,
    पांव रखे हो उसी पे
    बँध अदेखी बेड़ियों से !

    गहन चिंतन से परिपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति..बहुत प्रवाहपूर्ण

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  2. अनीता जी,

    सुन्दर भावो से सजी सुन्दरतम रचना......

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  3. खोजने को तुम जिसे
    कर रहे अभिनय युगों से
    पाँव रखे हो उसी पे
    बंध अदेखी बेड़ियों से
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना

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  4. यह एक ऐसी संवेद्य कविता है जिसमें हमारे यथार्थ का मूक पक्ष भी बिना शोर-शराबे के कुछ कह कर पाठक को स्पंदित कर जाता है।

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  5. आदरणीय अनिता जी
    नमस्कार !
    हो तिरोहित पूर्व उसके थाम लो बन जाओ धार ! कौन जाने कब खिलेगा? पुण्य सम पावन यह प्यार !
    ..........बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना

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  6. कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
    माफ़ी चाहता हूँ

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  7. अनिता जी सादर अभिवादन

    मुक्त छन्‍द बद्ध प्रस्तुतियां आज के दौर में बहुत ही कम पढ़ने को मिलती हैं| आपकी सन्दर्भित कृति अत्यन्त मनभावन लगी|
    समस्या पूर्ति ब्लॉग [http://samasyapoorti.blogspot.com/] से जुड़ने हेतु निवेदन|
    आपकी ई-मेल आइ डी navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|

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  8. खोजने का तुम जिसे
    कर रहे अभिनय युगों से,
    पांव रखे हो उसी पे
    बँध अदेखी बेड़ियों से !
    सुंदर अतिसुन्दर , कई अर्थों को अपने में समाये हुई रचना, बधाई

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  9. दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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