पुण्य सम पावन यह प्यार
अनसुनी जाने न पाए
मीत की कोई पुकार,
कौन जाने कब मिलेगी
झूमती गाती बहार !
कौन जाने कब खिलेगा
पुण्य सम पावन यह प्यार !
आँख भर के देख लो
बूंद कितनी देर ठहरी,
सप्तवर्णी अमिय धारे
ज्यों मधुर संगीत लहरी !
हो तिरोहित पूर्व उसके
थाम लो बन जाओ धार !
कौन जाने कब खिलेगा?
पुण्य सम पावन यह प्यार !
खोजने का तुम जिसे
कर रहे अभिनय युगों से,
पांव रखे हो उसी पे
बँध अदेखी बेड़ियों से !
खोल दृग देखो यदि तुम
जग किये सोलह सिंगार !
कौन जाने कब खिलेगा?
पुण्य सम पावन यह प्यार !
अनिता निहालानी
५ फरवरी २०११
खोजने का तुम जिसे
जवाब देंहटाएंकर रहे अभिनय युगों से,
पांव रखे हो उसी पे
बँध अदेखी बेड़ियों से !
गहन चिंतन से परिपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति..बहुत प्रवाहपूर्ण
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावो से सजी सुन्दरतम रचना......
खोजने को तुम जिसे
जवाब देंहटाएंकर रहे अभिनय युगों से
पाँव रखे हो उसी पे
बंध अदेखी बेड़ियों से
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
यह एक ऐसी संवेद्य कविता है जिसमें हमारे यथार्थ का मूक पक्ष भी बिना शोर-शराबे के कुछ कह कर पाठक को स्पंदित कर जाता है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनिता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
हो तिरोहित पूर्व उसके थाम लो बन जाओ धार ! कौन जाने कब खिलेगा? पुण्य सम पावन यह प्यार !
..........बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंमाफ़ी चाहता हूँ
अनिता जी सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंमुक्त छन्द बद्ध प्रस्तुतियां आज के दौर में बहुत ही कम पढ़ने को मिलती हैं| आपकी सन्दर्भित कृति अत्यन्त मनभावन लगी|
समस्या पूर्ति ब्लॉग [http://samasyapoorti.blogspot.com/] से जुड़ने हेतु निवेदन|
आपकी ई-मेल आइ डी navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|
खोजने का तुम जिसे
जवाब देंहटाएंकर रहे अभिनय युगों से,
पांव रखे हो उसी पे
बँध अदेखी बेड़ियों से !
सुंदर अतिसुन्दर , कई अर्थों को अपने में समाये हुई रचना, बधाई
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.