अद्वैत की महक
चलो, उठ खड़े हों, झाडें सिलवटों को
मन के कैनवास को फैला लें क्षितिज तक
प्यार के रंगो से फिर कोई खूबसूरत सोच रंग डालें !
चलो ऑंखें बंद करें, जाने अंतर्मन को
आत्मशक्तियां जागृत होकर एक हों,
और अपना छोटे से छोटा सुख भी साझा हो जाये !
चलो कह दें, सुना दें मन की हर उलझन
समझ लें, गिन लें दिल की हर धड़कन
अपना सब कुछ सौंप कर निश्चिंत हो जाएँ !
चलो करीब आयें जश्न मनाएं
विश्वास का अमृत पियें, बांटें
मै और तुम से मुक्त होने की याद में कोई गीत गाएँ
अद्वैत की महक से दुनिया महकाएँ !
अनिता निहालानी
७ अप्रैल २०११
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंएक नयी आशा का संचार करती ये पोस्ट,......शानदार - ये पंक्तियाँ
मै और तुम से मुक्त होने की याद में कोई गीत गाएँ
अद्वैत की महक से दुनिया महकाएँ !
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंचलो ऑंखें बंद करें, जाने अंतर्मन को
जवाब देंहटाएंआत्मशक्तियां जागृत होकर एक हों,
और अपना छोटे से छोटा सुख भी साझा हो जाये !
बहुत खूब! निशब्द कर दिया...आपकी लेखनी को नमन..
अद्वैत की महक फैलाती सारगर्भित कविता.
जवाब देंहटाएंवाह यह अद्वैत की महक ने सचमुच सुगन्धित कर दिया ..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअद्वैत की महक से दुनिया महकाएँ
जवाब देंहटाएंनिशब्द कर दिया...बहुत ही सुन्दर