शुक्रवार, जून 17

ब्लॉग जगत के सभी पाठकों को समर्पित


एकत्व जगाती है कविता

कवि को कौन चाहिए जग में
एक सुहृदय पाठक ही तो,
कोई तो हो जग में ऐसा
जो समझे उसकी रचना को !

पाठक पढ़ जब होता हर्षित
कवि और उत्साह से लिखता,
रख देता उंडेल कर दिल को
अंतर का बल उसमें भरता !

कवि शब्दों का खेल खेलता
पाठक उसमें होता शामिल,
सीधी दिल में जाकर बसती 
कविता पूरी होती उस पल !

एकत्व जगाती है कविता
जाने कितने दिल यह जोड़े
देश काल के हो अतीत यह
फैले हर सीमा को तोड़े !

कवि खड़ा होता निर्बल हित
सर्वहारा, वंचित जनता हित,
अंतर भर पीड़ा से उनकी 
विरोध करे अन्याय का नित !

अनिता निहालानी
१७ जून २०११
  

19 टिप्‍पणियां:

  1. पाठक पढ़ जब होता हर्षित
    कवि और उत्साह से लिखता,
    रख देता उंडेल कर दिल को
    अंतर का बल उसमें भरता !

    कवि और उसकी कविता दोनो को उतार दिया आपने……एक यही तो चाह होती है उसकी…………अति सुन्दर्।

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  2. कवि खड़ा होता निर्बल हित
    सर्वहारा, वंचित जनता हित,
    अंतर भर पीड़ा से उनकी
    विरोध करे अन्याय का नित !

    निश्छल ..कोमल ..सुंदर ..सहृदय ..कोमल भाव ....!!
    सुंदर रचना .

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  3. anita ji itni sundar bhavpoorn kriti hame padhvane ke liye aabhar...

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  4. कवि को कौन चाहिए जग में
    एक सुहृदय पाठक ही तो,
    कोई तो हो जग में ऐसा
    जो समझे उसकी रचना को !

    बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...बहुत सुन्दर

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  5. कवि खड़ा होता निर्बल हित
    सर्वहारा, वंचित जनता हित,
    अंतर भर पीड़ा से उनकी
    विरोध करे अन्याय का नित

    सही कहा आपने.

    सादर

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  6. कवि शब्दों का खेल खेलता
    पाठक उसमें होता शामिल,
    सीधी दिल में जाकर बसती
    कविता पूरी होती उस पल

    सटीक बात लिखी है ...कविता तभी सफल होती है ...जब पाठक के मन तक पहुंचती है

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  7. bahut sundarta ke sath kavi ke hrdy v kavita ke lakshy ko rekhankit kiya hai Anita ji aapne .badhai .

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  8. कवि और कविता दोनो के मन की बात कह दी आपने ....

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  9. एक सुहृदय पाठक ही तो,
    कोई तो हो जग में ऐसा
    जो समझे उसकी रचना को !

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...........!

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  10. पाठक पढ़ जब होता हर्षित
    कवि और उत्साह से लिखता,
    रख देता उंडेल कर दिल को
    अंतर का बल उसमें भरता !

    Adbhut aur Satya ke saath Saundarymayee bhi. Abhar.

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  11. "कवि खड़ा होता निर्बल हित
    सर्वहारा, वंचित जनता हित,
    अंतर भर पीड़ा से उनकी
    विरोध करे अन्याय का नित"
    हमारे आपके सबके मन की बात कह दी इतनी सादगी से

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  12. शुक्रिया अनीता जी......हम जैसे पाठकों को भी आपने ये कविता समर्पित की|

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  13. एकत्व जगाती है कविता
    जाने कितने दिल यह जोड़े
    देश काल के हो अतीत यह
    फैले हर सीमा को तोड़े !
    bahut sachchai batati hui bhavmai,bemisaal rachanaa.badhaai.

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  14. सच है पाठक के बिना कविता का वो महत्त्व नहीं होता ...हम भी इस कविता के पाठक हैं ...

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  15. अनीता जी ! यकीन मानिये..कैसा कैसा मन था आज..आपकी कविता ने सारा मन हल्का कर दिया.और क्या चाहिए एक रचनाकार को.एक पाठक जो समझ सके उसकी अभिव्यक्ति बस.
    रूह तक उतरी आपकी पंक्तियाँ.
    बहुत बहुत आभार आपका. और संगीता जी का जिनकी चर्चा से आपतक पहुंची मैं.

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  16. सत्य वचन , सुँदर अभिव्यक्ति . आभार

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  17. कवि शब्दों का खेल खेलता
    पाठक उसमें होता शामिल,
    सीधी दिल में जाकर बसती
    कविता पूरी होती उस पल !

    yahi har kavi ki chaah aur protsaahan hai.

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