बुधवार, जून 8

कवि और कविता


कवि और कविता

वाणी अटकी, बोल न फूटे
 अंतर का चैन कोई लूटे,
कविता दिल की भाषा जाने
कितने कूल-किनारे छूटे !

रागी मन बनता अनुरागी
भीतर कैसी पीड़ा जागी,
पलकों में पुतली सा सहेजे
भीतर लपट लगन की लागी !

उर में प्रीत भरे वह करुणा
डबडब नयना करें मनुहार,
छलक-छलक जाये ज्यों जल हो
गहराई में छिपा था प्यार !

सरल, तरल बहता मन सरि सा
घन बन के जो जम ना जाये,
अंतर उठी हिलोर उलीचे
नियति लुटाना, कवि कह जाये !


अनिता निहालानी
८ जून २०११    

11 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही कहा है ..कवि के हृदय की बात तो कविता में ही बह जाती है

    जवाब देंहटाएं
  2. उर में प्रीत भरे वह करुणा
    डबडब नयना करें मनुहार,
    छलक-छलक जाये ज्यों जल हो
    गहराई में छिपा था प्यार !

    बिलकुल सही बात कही आपने.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सरल, तरल बहता मन सरि सा
    घन बन के जो जम ना जाये,
    अंतर उठी हिलोर उलीचे
    नियति लुटाना, कवि कह जाये !

    सुंदर गीत, सटीक शब्द चयन. बढ़िया भाव. शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  4. सरल, तरल बहता मन सरि सा
    घन बन के जो जम ना जाये,
    अंतर उठी हिलोर उलीचे
    नियति लुटाना, कवि कह जाये !

    बहुत सुंदर भाव....

    जवाब देंहटाएं
  5. सरल, तरल बहता मन सरि सा
    घन बन के जो जम ना जाये,
    अंतर उठी हिलोर उलीचे
    नियति लुटाना, कवि कह जाये !
    बहुत अच्छी रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी पोस्ट यहाँ भी है……नयी-पुरानी हलचल

    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  7. अंतर उठी हिलोर उलीचे
    नियति लुटाना, कवि कह जाये !
    sunder bhav.

    जवाब देंहटाएं
  8. उर में प्रीत भरे वह करुणा
    डबडब नयना करें मनुहार,
    छलक-छलक जाये ज्यों जल हो
    गहराई में छिपा था प्यार !
    ह्र्दय से निकली सुन्दर अभिव्यक्ति्…..….

    जवाब देंहटाएं