गुरुवार, अप्रैल 19

पिता


पिता

मिलते ही धर देते हैं
हाथ पर कुछ नोटों की सौगात
जैसे हो हमारी अमानत उनके पास
सौंप कर जिसे निश्चिन्त होना चाहते हों...

आठ दशकों से देखे होंगें
उतार-चढ़ाव न जाने कितने
पर आँखें नव शिशु सी स्वच्छ हैं..
झाड़ दिये हैं शायद उदास पंख
और उड़ते हैं बेपंख ही
भीतर के आकाश में...

माँ के बिना भी पूर्ण नजर आने लगे हैं पिता
माँ जैसे उनके भीतर समा गयी हैं
पिलाते अपने हाथों से बनाकर चाय
बिस्तर लगाते
सिखाते छोटी-छोटी बातें..
थमाते घर गृहस्थी की छोटी छोटी वस्तुएँ
पिता सजग हैं और संतुष्ट भी !

16 टिप्‍पणियां:

  1. पिता का साया और उनका आशीर्वाद हमेशा यूँ ही बना रहे ।

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  2. मां के ना होने पर दोहरी भूमिका निभाते हैं पिता.....
    सिर्फ अपने बच्चों की खातिर.....

    बहुत सुंदर रचना अनीता जी.

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  3. पिता का अच्छा चित्र खींचा है आभार आपका !
    शुभकामनायें आपको !

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...आभार

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  5. पिता को इस एंगिल से शायद ही किसी ने कविता में देखा हो। आप सदैव नए विचारों को लेकर आती हैं।

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  6. धन्य हैं ऐसे पिता और किस्मत वाले हैं वे जिनके सिर पर इनका साया है... भावपूर्ण रचना के लिए आभार आपका

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  7. पिता भी पूरी ज़िम्मेदारी उठाते हैं ... सुंदर रचना

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  8. अनूठे शब्द और अद्भुत भाव से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...

    नीरज

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  9. कल 17/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. मिलते ही धर देते हैं
    हाथ पर कुछ नोटों की सौगात
    मगर पापा!
    आज जब जीवन की,
    हर छोटी-बड़ी बाधाओं को,
    आपके 'वे लम्बे-लम्बे भाषण' हल कर देते है,

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  11. फादर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  12. सच. ज़रूरत पड़ने पर पिता माँ का फ़र्ज़ भी निभा सकते हैं

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