सोमवार, जुलाई 1

पिता की स्मृति में


पिता की स्मृति में


एक आश्रय स्थल होता है पिता
बरगद का वृक्ष ज्यों विशाल
नहीं रह सके माँ के बिना
या नहीं रह सकीं वे बिना आपके
सो चले गये उसी राह
छोड़ सभी को उनके हाल....

पूर्ण हुई एक जीवन यात्रा
अथवा शुरू हुआ नवजीवन
भर गया है स्मृतियों से
मन का आंगन
सभी लगाये हैं होड़ आगे आने की
लालायित, उपस्थिति अपनी जताने की
उजाला बन कर जो पथ पर
चलेंगी साथ हमारे
बगीचे से फूल चुनते
सर्दियों की धूप में घंटों
अख़बार पढ़ते
नैनी के बच्चे को खिलाते
मंगलवार को पूजा की तैयारी करते
जाने कितने पल आपने संवारे....

विदा किया है भरे मन से
काया अशक्त हो चुकी थी
पीड़ा बनी थी साथी
सो जाना ही था पंछी को
 छोड़कर यह टूटा फूटा बसेरा
नये नीड़ की तलाश में

जहाँ मिलेगा एक नया सवेरा... 

(पिछले माह १८ जून को ससुर जी ने देह त्याग दिया, काशी में उनको अंतिम विदाई देकर आज ही हम लौटे हैं)

12 टिप्‍पणियां:

  1. मृतात्मा की शांती के लिए हृदय से प्रार्थना करती हूँ .....बहुत सुंदर श्रद्धांजली दी है |आँख नाम कर गई |
    बहुत दिनों से आपकी अनुपस्थिति खल रही थी|मन मेँ कुछ चिंता सी थी !
    पिता की स्मृतियों को पुनः नमन ।

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  2. पिता बरगद की छांव होता है ..... पर सबको एक दिन देह त्यागनी है जाने वाले के बिना भी जीवन जीना ही पड़ता है .... उनकी आत्मा को शांति मिले यही प्रार्थना है ।

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  3. प्रतिभाजी, शिखा जी व रविकर जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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  4. मात पिता की स्मृति को साकार करती मूर्त करती सुन्दर रचना .

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन खास है १ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. कैलाश जी व वीरू भाई, आभार !

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  7. ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दे.......आमीन।

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