शुक्रवार, अगस्त 7

हर दिल की यही कहानी है

 हर दिल की यही कहानी है 


कुछ पाना है जग में आकर 

क्या पाना है यह ज्ञात नहीं, 

कुछ भरना है खाली मन में 

क्या भरना है आभास नहीं !

 

जो नाम कमाया व्यर्थ गया 

अब भी अपूर्णता खलती है, 

जो काम सधे पर्याप्त नहीं 

भीतर इच्छाएँ पलती हैं !

 

कर-कर के भी शमशान मिला

ना कर पाए जो पीड़ित है, 

माया मिली न ही राम मिला 

हर दिल की यही कहानी है !

 

था सार्स अभी कोरोना है 

सोयी मानवता जाग उठे, 

निज सुख खातिर दुःख न बांटें 

हर प्राण बचे जो, पाठ पढ़े !

 

क्यों भीतर झाँक नहीं देखा  

वह पूर्ण जहाँ का वासी है, 

वह दूजा न ही पराया है 

निज भाव स्रोत अविनासी है !


11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को     "भाँति-भाँति के रंग"  (चर्चा अंक-3788)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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