शुक्रवार, जनवरी 28

जब से तुमसा खुद को जाना !



जब से तुमसा खुद को जाना !


धरा वही है, वही गगन है
वही सूर्य, चन्द्रमा, तारे
किन्तु हुई है मधुमय, रसमय
मिले हैं जब से नयन हमारे !

यूँ ही नहीं हूँ मनु का वंशज
हुआ सार्थक जग में आना,
अर्थ मिला है इक-इक क्षण को
जब से तुमसा खुद को जाना !

सृजन ऊर्जा, प्राण ऊर्जा
है अनंत, असीम हो बांटे,
मुक्तिबोध प्रबल है इतना
सम है पथ पर पुष्प व कांटे !

लक्ष्य एक ही उस अनंत का
कण कण में जो रहा समोए,
निर्मल अंतर घट घट में जा
प्रेम सिंधु में सहज डुबोए !

अनिता निहालानी
२८ जनवरी २०११  




9 टिप्‍पणियां:

  1. sundartam bhavon ko aapne komal shabdon ke madhayam se prastut kiya hai .bahut achchhi bhavabhivyakti .

    जवाब देंहटाएं
  2. यूँ ही नहीं हूँ मनु का वंशज
    हुआ सार्थक जग में आना,
    अर्थ मिला है इक-इक क्षण को
    जब से तुमसा खुद को जाना !

    बहुत अच्छी रचना है आपकी. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. यूँ ही नहीं हूँ मनु का वंशजहुआ सार्थक जग में आना,अर्थ मिला है इक-इक क्षण कोजब से तुमसा खुद को जाना !---अपने होने को सार्थक करती हुईं बहुत ही सटीक लगीं ये पंक्तियाँ.

    जवाब देंहटाएं
  4. धरा वही है, वही गगन है
    वही सूर्य, चन्द्रमा, तारे
    किन्तु हुई है मधुमय, रसमय
    मिले हैं जब से नयन हमारे !

    बहुत सुंदर रचना -
    एकात्मकता का बोध कराती हुई -

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..ईश्वर के निकट पहुँचने का मार्ग बताती हुई

    जवाब देंहटाएं
  6. अनीता जी,

    बहुत ही सुन्दर लगी ये पोस्ट......प्रेम की गहनतम अनुभूति समेटे इस पोस्ट में ये पंक्तियाँ सबसे ज़्यादा पसंद आयीं -

    धरा वही है, वही गगन है
    वही सूर्य, चन्द्रमा, तारे
    किन्तु हुई है मधुमय, रसमय
    मिले हैं जब से नयन हमारे !

    जवाब देंहटाएं
  7. लक्ष्य एक ही उस अनंत का
    कण कण में जो रहा समोए,
    निर्मल अंतर घट घट में जा
    प्रेम सिंधु में सहज डुबोए !

    गहन दर्शन की बहुत प्रवाहमयी और प्रभावपूर्ण प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं