शुक्रवार, जुलाई 22

कबीरा खड़ा बाजार में


कबीरा खड़ा बाजार में

तन्हा नहीं है कोई जग में
 जात खुदा की सदा सँग है
मौला-मस्त बना फिरता है
 जिस पर उसका चढ़ा रंग है !

तोड़े गम से नाता अपना
 दिल में छायी बस उमंग है
पहन फकीरी बाना देखो
 बिन ही पिए चढ़ी तरंग है !

सारा जग है उसका अपना
 देख जमाना उसे दंग है
सदा बहाता प्रेम की धारा
 दिल है जैसे नीर गंग है !

सुलह कराना आदत उसकी
 जब भी जिसमें छिड़ी जंग है
दौलत सभी लुटाता फिरता
 जब दुनिया का हाल तंग है


शुकराना हर श्वास में करता
 जीने का यह नया ढंग है
जंगल-बस्ती घूमे जोगी, 
बनजारा या वह मलंग है ! 


11 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut Bahut abhar anita ji .. mujhe ye sab sikhane ke liye..

    Apki kavita me lagta hai jaise meri maa mujhe samjha rahi ho.. Lagta hai unki soch ekdum apki jaisi hi hai .. shabd bhi kabhi kabhi ek ho jate hain.

    Bahut hi Abhar, itni sundar rachna ke liye.

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  2. आपकी किसी रचना की हलचल है ,शनिवार (२३-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ...!!कृपया आयें और अपने सुझावों से हमें अनुग्रहित करें ...!!

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  3. सुलह कराना आदत उसकी जब भी जिसमें छिड़ी जंग है
    दौलत सभी लुटाता फिरता जब दुनिया का हाल तंग है
    bahut sundar prastuti bhavpoorn bhi

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  4. तन्हा नहीं है कोई जग में जात खुदा की सदा सँग है
    मौला-मस्त बना फिरता है जिस पर उसका चढ़ा रंग है
    बहुत सुंदर रचना....

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  5. शुकराना हर श्वास में करता जीने का यह नया ढंग है
    जंगल-बस्ती घूमे जोगी, बनजारा या वह मलंग है !

    बहुत सार्थक और प्रेरक रचना..बहुत सुन्दर..आभार

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  6. तोड़े गम से नाता अपना दिल में छायी बस उमंग है
    पहन फकीरी बाना देखो बिन ही पिए चढ़ी तरंग है !

    आपकी इस रचना की जितनी तारीफ़ की जाये कम है ....सुफ़ियाना मिज़ाज है ....रचना की तरंगो के साथ ....मन झूम गया पढ़ कर .....

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  7. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।

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  8. वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

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  9. सूफियों की मस्ती भरी है इस पोस्ट में...........दिल झूम उठा है ...........शानदार, बेहतरीन|

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  10. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...आभार

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