रविवार, अक्तूबर 23

आखिर क्यों


आखिर क्यों

चहकते पंछी की तरह हम आकाश को
अपनी बाँहों में चाहते भरना
हवा के तेज झोंके से ढह गए
रेत के घरौंदे की मानिंद
टूट जाते ऊंचाई के परिमाण
जाते साथ छोड़ आस्था के आयाम
होता नहीं विश्वास ताश का महल
न ही पुल कच्चे धागे का
किन्तु चाहे जो होना स्वयं विश्वास...
चाहे जो आकाश... चाहे जो सागर ...

उगते सूरज को देख देख मुस्काते हम
क्यों रह जाते हैं एकाकी
लख फूलों को टहनियों से झूलते
हजार आँखों से देखते दुनिया
हरि घास की मखमली चादर पर
साथ छोड़ देती क्यों मुस्कान अचानक
दिशाएं क्यों पूछती सी लगती सवाल
हम नासमझ बच्चे से चुपचाप
खड़े रह जाते...
सहने कोई तीखा दंश अध्यापक का, ज्यों बालक

देख नीलवर्णी निर्मल वितान को 
चुप हो जाते गाँव के गाँव
टेरते चुप आवाजों में वे गायों को
चुप हो जाता मन भी किसे टेरता
शीतल माटी पर पांव टिकाए
खड़े रहना क्यों भला लगता मन को...
चहकते पंछी की तरह चाहते हम आकाश को....



9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाएं ||
    रचो रंगोली लाभ-शुभ, जले दिवाली दीप |
    माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||
    घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
    लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर व्यापारी |
    नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
    दो बच्चों का साथ, रचो मिलकर रंगोली ||

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी,अनीता जी.

    धनतेरस व दीपावली पर आपको व आपके परिवार
    को हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  3. गहन भाव व्यक्त किये हैं ..सुन्दर प्रस्तुति

    दीपावली की शुभकामनायें

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  4. प्रकृति का सान्निध्‍य भला लगता है सबको ..
    सपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!

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  5. लाजवाब प्रस्तुति
    आपको व आपके परिवार को दीपावली कि ढेरों शुभकामनायें

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  6. ज़बरदस्त......भावमय......और शब्द नहीं सूझते.........हैट्स ऑफ |

    आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|

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  7. आभार व आप सभी को ज्योतिपर्व की शुभकामनायें!

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  8. दीपावली व धनतेरस की शुभकामनाएं।

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  9. बहुत सुन्दर भावमयी अभिव्यक्ति..दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

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