गुरुवार, नवंबर 10

मन दीवाना


मन दीवाना

कोई नजर नहीं आता जब
जाने किससे बतियाता है,
मन को दीवाना कहने का
पूरा-पूरा हक है हमको !

कोई दुःख देने वाला जब
दूर-दूर तक नजर न आये,
केले के पत्ते सा कांपे
जाने क्या खलिश है इसको !

दुनिया अपनी राह चल रही
रोती हो या हंसती खुद पर,
मन जाने किस भोले पन में
जाने इसका कारण खुद को !

वार्तालाप चला करता है
निशदिन जाने किसके साथ,
भूत, भविष्य माया दोनों
दे डाला है खुद को किसको !

4 टिप्‍पणियां:

  1. वार्तालाप चला करता है
    निशदिन जाने किसके साथ,
    भूत, भविष्य माया दोनों
    दे डाला है खुद को किसको !

    बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं।

    सादर

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  2. कोई दुःख देने वाला जब
    दूर-दूर तक नजर न आये,
    केले के पत्ते सा कांपे
    जाने क्या खलिश है इसको !
    सुन्दर बिम्ब प्रयोग!

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  3. सुभानाल्लाह.........बहुत ही बेहतरीन |

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