देर है वहां अंधेर नहीं
देर है वहां अंधेर नहीं
तभी पुकार सुनी धरती की
सूक्ष्म रूप में भू पर आके
व्यवस्था काल लगा है लाने
कामना और आवश्यकता का अंतर समझाने
बेघरों को आश्रय दिलवाने
बच्चों और बुजुर्गों को उनका समय दिलाने
वरना आज का युवा सुबह से निकला रात को घर आया
मनोरंजन के साधन खोजे, भोजन भी बाहर से मंगवाया
परिवार में साथ रहकर भी सब साथ कहाँ थे
सब कुछ था, पर ‘समय’ नहीं था
न अपने लिए न अपनों के लिए
घर चलते थे सेवक-सेविकाओं के सहारे
भूल ही गए थे घर में भी होते हैं चौबारे
सुबह की पूजा, दोपहर का ध्यान, शाम की संध्या
तीनों आज प्रसन्न हैं
जलता है घर में दीया, योग-प्राणायाम का बढ़ा चलन है
हल्दी, तुलसी, अदरक का व्यवहार बढ़ा है
स्वच्छता का मापदंड भी ऊपर चढ़ा है
शौच, संतोष, स्वाध्याय... अपने आप
यम-नियम सधने लगे हैं
भारत की पुण्य भूमि में अपनी संस्कृति की ओर
लौटने के आसार बढ़ने लगे हैं
‘तप’ ही यहां का मूल आधार है
ब्रह्मा ने तप कर ही सृष्टि का निर्माण किया
शिव ने हजारों वर्षों तक ध्यान किया
कोरोना को भगाने के लिए हमें तपना होगा
जीवन के हर क्षण को सद्कर्मों से भरना होगा !
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
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