तू ही दाता
‘देने’ को कुछ न रहा हो शेष
जब आदमी के पास
तब कितना निरीह होता है वह !
देना ही उसे आदमी बनाये रखता है
मांगना मरण समान है
खो जाता जिसमें हर सम्मान है !
देना जारी रहे पर किसी को मांगना न पड़े
ऐसी विधि सिखा रहा आज हिंदुस्तान है !
पिता जैसे देता है पुत्र को
माँ जैसे बांटती है अपनी सन्तानों को
उसी प्रेम को भारत के जन-जन में प्रकट होना है
ताकि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ मानन वाली इस संस्कृति की
बची रहे आन,आँच न आए उसे !
जहां अनुशासन और संयम
केवल शब्द नहीं हैं शब्दकोश के
यहां समर्पण और भक्ति
कोरी धारणाएं नहीं हैं
यहां परमात्मा को सिद्ध नहीं करना पड़ता
वह विराजमान है घर-घर में
कुलदेवी, ग्राम देवी और भारत माता के रूप में !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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