बुधवार, अप्रैल 15

उतर आये हैं वे सड़कों पर


 उतर आये हैं वे सड़कों पर 


छा गयी  है जैसे भय की इक विशाल बदली 
आस का सूरज कहीं नजर नहीं आता  
अनिश्चितता के इस वातावरण में 
आशंकाओं के दंश चुभते ही जाते हैं 
खाली हाथ, क्षुधा से पीड़ित, मनों में चिंता 
मजदूरों की रोजी ही नहीं  छिनी 
छिना है उनके जीवन का आधार 
उनका आत्मसमान, 
अपने हाथों से कमा कर खाने का सुख
उनके सपने 
परिवार के स्नेह से वंचित परदेस में
वे जी रहे थे जिस श्रम के बलबूते 
वही छिन गया है...
उनके जीवन का 
सहज मार्ग ही जैसे छूट गया है !
मजबूर होकर ही शायद 
वे उतर आये हैं सड़कों पर 
मिलकर उन्हें थामना होगा 
इससे पहले कि वे धैर्य छोड़ दें 
मालिक मजदूर का नाता तोड़ दें 
उनका देय उन्हें देना होगा  
झाँकना होगा उनके मनों में 
भीतर जितनी आशंका होगी 
बाहर उतनी दूरी बढ़ेगी 
उन्हें बताना होगा, यह लड़ाई लंबी है 
बदले हुए हालात में वे भी एक सैनिक हैं 
उन्हें सहन होगा यह दर्द 
जीवन के लिए, देश के लिए 
परिवर्तन आएगा, इतना तो तय है !


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.4.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3673 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  2. अनिता दी, सही कहा आपने कि इससे पहले की मजदूर अपना धैर्य खो दे हमे उन्हें थामना होगा। कोरोना की लडाई में उनका धैर्य रखना कितना आवश्यक हैं यह भी उन्हें समझाना होगा।

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  3. उनकी परेशानियों का सही आकलन नहीं हो पा रहा ! पर साथ ही यह भी सच है कि उनकी सरलता, भावनाओं, अज्ञानता और मजबूरी का लाभ उठा अपने ओछे स्वार्थ की पूर्ती का साधन बनाने से भी कुछ स्वार्थी बाज नहीं आ रहे !

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    1. सही कह रहे हैं आप, इन स्वार्थी तत्वों को यह मौका ही न मिले इसके लिए इस समस्या को जल्द से जल्द देखना होगा।

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