मंगलवार, अप्रैल 14

उर दर्पण में उसको देखा

उर दर्पण में उसको देखा 


उर दर्पण में ‘उसको’ देखा 
‘उसको’ यानि स्वयं को देखा,
आश्वस्ति की लहर छू गयी
जब-जब भीतर जाकर देखा !

पहले-पहले गहन बवंडर 
झंझावात बहुत उठेंगे, 
अनजाने रस्तों पर मन के 
बीहड़ कंटक पाहन होंगे !

लेकिन दूर कहीं से कोई 
झरने की कल-कल भी आती, 
कभी किसी पंछी की कुह-कुह
मधुरिम कोई प्यास जगाती !

निकट कहीं ही वह बसता है 
श्रद्धा दीप न बुझने पाए, 
बढ़ता रहे निरन्तर राही 
मंजिल इक दिन सम्मुख आए !

एक झलक जो भी पा लेता 
जग में नहीं अजनबी रहता,
पर्वत नदिया बादल उपवन 
सबसे दिल का नाता बनता ! 

कुदरत से संघर्ष नहीं हो 
मानव उसका एक अंश है, 
माँ से दूर गया हो बालक 
चुभता उर में सदा दंश है !

अवसर एक हाथ आया है 
अंबर से हम नाता जोड़ें, 
धरती पर जब पाँव धरें तो 
माँ कहकर ही नमन भी करें ! 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. कुदरत से संघर्ष नहीं हो
    मानव उसका एक अंश है,
    माँ से दूर गया हो बालक
    चुभता उर में सदा दंश है !
    वाह!!!
    अद्भुत, लाजवाब सृजन

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  3. गहन अनुभवों की सुंदरतम अभिव्यक्ति ।।।

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