सदियों से हम वहीं खड़े थे
सदा मानव ने स्वयं को श्रेष्ठ माना
अपने अस्तित्त्व को बनाये रखने
और फलने-फ़ूलने के लिए
प्रकृति की अन्य सन्तानों को दांव पर लगाया
पंछियों से उनका आश्रय छीना
पशुओं को बेघर किया
कीट नाशकों का कर निर्माण
अनेकों प्रजातियों को विलुप्त ही कर दिया !
नदियों को नालों में बदल दिया
समन्दरों को कचराघरों में
भर दिया, आकाश को अंतहीन ध्वनियों से
मिटा दिया, आवश्यकता और विलासिता के मध्य की रेखा को ही
देव संस्कृति और असुर संस्कृति का
ऐसा घेलमाल किया
कि सर्वे भवन्तु सुखिनः के स्थान पर
‘मैं सुखी होऊं’ का मन्त्र गूँजने लगा !
मानव की भोगलिप्सा का मुख
सुरसा की तरह बढ़ता ही गया
जिसमें वह लील गया
लाखों निरीह प्राणियों को जिंदा ही
एक दिन तो चक्र घूमना ही था
अब नारायण का चक्र उल्टा चल रहा है
मानव सिमट रहे हैं
जीव-जगत प्रसारित हो रहा है
नदियां श्वास ले रही हैं
सागर उत्तंग लहरें उठा रहे हैं !
प्रकृति स्वयं को संवार रही है स्वयं ही
मानव देवी की मूर्तियों को सजाता है
फिर उससे भी जल को दूषित करता है
जीती-जागती माँ है यह प्रकृति
उसका श्रृंगार करने की न मानव में सामर्थ्य है न इच्छा ही
जहाँ ज्ञान हो शुभ, वहाँ शुभेच्छा जगेगी
मानव को ज्ञान का अमृत पीना होगा
इस दुनिया में धरती पुत्र बनकर जीना होगा
यह विषाणु का बीज मानव ने ही बोया है
अब भी यदि वह सोया है तो रोना ही पड़ेगा
क्योंकि कोरोना में ही छुपा है रोना !
मानव श्रेष्ठ है... इसलिए
कि वह सभी को साथ लेकर चले
देखे, कि हर प्राणी, हर फूल-पौधा भी खिले !
बेहद सशक्त लिखा आपने ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सदा जी !
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
05/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
हटाएंखूबसूरत प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06 -04-2020) को 'इन दिनों सपने नहीं आते' (चर्चा अंक-3663) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
मानव और प्रकृति का ताल-मेल बहुत आवश्यक है.
जवाब देंहटाएंमनुष्य अपने क्रियाकलापों से अपनी स्वार्थपरता के लिए प्रकृति को सदैव आहत ही करता रहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
सदा मानव ने स्वयं को श्रेष्ठ माना
जवाब देंहटाएंअपने अस्तित्त्व को बनाये रखने
और फलने-फ़ूलने के लिए
प्रकृति की अन्य सन्तानों को दांव पर लगाया
पंछियों से उनका आश्रय छीना
पशुओं को बेघर किया
कीट नाशकों का कर निर्माण
अनेकों प्रजातियों को विलुप्त ही कर दिया.. बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी.
सादर
बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमानव श्रेष्ठ है पर लोगों की सहायता करें तब
गंभीर और सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबधाई