भेद - अभेद
शब्दों को मार्ग दें तो वे
भावनाओं के वस्त्र पहन
बाहर चले आते हैं
यदि राह में कण्टक न हों
बेहिसाब इच्छाओं के
प्रमाद के पत्थर न रोक लें उनका मार्ग
तो विमल सरिता से वे बहते चले आते हैं
धोते हुए अंतर्जगत
और बाहर भी उजास फैलाते हैं
शब्दों में छुपा है ऋत
और वाग्देवी ने उन्हें तराशा है
मानव के पास अस्तित्त्व का
अनुपम उपहार उसकी भाषा है
इन्हें मैला न होने दें
इन्हें तोड़ने का नहीं जोड़ने
का साधन बनाएं
मानवता को सुलाने के लिए लोरी न बनें ये
इनमें क्रांति की चिंगारी सुलगाएँ
कि गिर जाएँ मिथ्या दीवारें
खो जाएँ सारे भेद
एक गुलदस्ते की तरह
नजर आये दुनिया
घटे अभेद !
बहुत सुन्दर सन्देशप्रद प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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