शनिवार, अप्रैल 18

देव और मानव


देव और  मानव 


कोटि-कोटि ब्रह्मांडों के सृजन का 
जो है साक्षी 
अरबों-खरबों आकाश गंगाओं की रचना का भी 
जिसके सम्मुख प्रतिक्षण
 जन्मते और नष्ट होते हैं लाखों नक्षत्र 
वही जो कहाता है महानायक ! 
शिव ! तांडव नर्तक !

इस अपार आयोजन का
 एक नन्हा सा अंश है वसुंधरा 
 सागरों, वनों, पशु-पंछियों संग 
जिस पर मानव उतरा
सृष्टि चालन में शिव का सहायक 
चाहता तो देव बन सकता था मानव 
किन्तु काल की इस अनंत धारा में 
बहता हुआ हो गया वह दानव !

स्वयं को शक्तिशाली समझ 
अन्य जीवों के प्राणों की कीमत पर 
दुर्बलों पर बल प्रयोग कर 
अंतहीन क्षुधा को 
तृप्त करने हेतु 
धरा का किया निरंकुश दोहन 
हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया 
कर अनवरत युद्धों का आयोजन !

कृषकों से भूमि छीनी 
बच्चों के मुख से दूध 
प्रसाधनों के लिए 
निरीह पशुओं को सताया 
 लोभ की पराकाष्ठा हुई अब 
अपरिमित साधन सिमटते ही जाते  
हजारों आज भूखे ही सो जाते 
अब मौसम भी अपने समय पर नहीं आते 
समय रहते चेत जाये 
इसी में उसका भविष्य समाया है 
सृष्टि का वह रखवाला सचेत करने आया है !


6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति सचेत करती है पर मानव अपने अहं के आगे किसी को नहीं गुनता है - इस बार का ज़ोरदार झटका उसे हिला-डुला कर सबक सिखा दे शायद- आशा करें हम !

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    1. सही कह रही हैं आप, अब यदि चेत गया मानव तभी जग का भला हो सकता है

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