शुक्रवार, अप्रैल 17

इक राह नई चुननी है

इक राह नई चुननी है 


इक राह नई चुननी है 
रक्षित दुर्ग बनाना है, 
इस अनजाने दुश्मन से
सबको ही बचाना है !

धीरज की बाँह पकड़कर 
सहना है हर अनुशासन ,
मन ना कोई विचलित हो
 शुभ संदेश सुनाना है !

थोड़े में गुजारा हो 
मिल बांट के हम खाएँ,
कोई भी अकेला हो 
उसे ढूंढ के लाना है !

मीलों की भले दूरी 
दिल से नहीं दूर रहें, 
करुणा जगे अंतर में 
यही फूल खिलाना है !

4 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    19/04/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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