जीवन द्वन्दों का है खेल
जीवन मन मोहक अति सुंदर
किन्तु बांधता मोह पाश में,
सुख का देता है आश्वासन
दुःख झेलते इसी आश में !
जीवन द्वन्दों का है खेल
जन्म-मरण झूले में झुलाता,
कभी हिलोरें लेता है मन
फिर खाई में इसे गिराता !
जीवन सदा भुलावा देता
कर्मों में उलझाया करता,
दौड़-भाग कर कुछ तो पा लो
आगे सुख है यह भरमाता !
जीवन के ये दंश मधुर हैं
किन्तु क्षणिक बस पल भर के हैं,
मृगतृष्णा या मृगमरीचिका
ओस की बूंदों से कण भर हैं !
किन्तु एक और भी जीवन
नित नूतन प्रेम का वर्धन,
पल पल कुसुमित, होता गुंजन
थम कर दो पल आत्म निरीक्षण !
अनिता निहालानी
१० दिसंबर २०१०
आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.uchcharan.com
.
शब्दों और भावों का सुन्दर तारतम्य
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजीवन के ये दंश मधुर हैं
जवाब देंहटाएंकिन्तु क्षणिक बस पल भर के हैं,
मृगतृष्णा या मृगमरीचिका
ओस की बूंदों से कण भर हैं !
सुदर अभिव्यक्ति अनिताजी !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..हर दुःख इसी तरह झेल लिए जाते हैं कि कभी तो सुख मिलेगा ....
जवाब देंहटाएं"जीवन द्वन्दों का है खेल……………ज़िन्दगी का सार संजो दिया है …………एक बेहद उम्दा पस्तुति।
जवाब देंहटाएंselfexamination is so important!
जवाब देंहटाएंsundar rachna dwand ko rekhankit karti hui!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .... मनोभावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह आपकी ये कविता भी अध्यात्म की गहराई को महसूस कराती है.....बहुत सुन्दर.....
मुझे लगा ये यूँ होना चाहिये था ...
आश - आशा
झुलाता - झूलाता
आप सभी का हृदय की गहराइयों से आभार एवं धन्यवाद तथा जीवन को समझने के इस सफर में साथ चलने का आमन्त्रण !
जवाब देंहटाएं