कोई मेघ प्रीत बन बरसा
दिल के आँगन की मुंडेर पे, यादों की गौरैया चहकी
फूलों वाले इस मौसम में, मदमाती पुरवैया महकी I
स्मृतियों की चूनर ओढ़े, मन राधा ने गठरी खोली
बौर लदे आमों के वन में, इठलाती कोयलिया बोली I
सिंदूरी वह शाम सुहानी, था बचपन जब हो गया विदा
कोई मेघ प्रीत बन बरसा, यह मन उस पर हो गया फ़िदा I
बाबा की वह हंसतीं आँखें, माँ का भीगा-भीगा प्यार
याद आ रहा बरसों पहले, छलका था भैया का दुलार I
जीवन कितना बदल गया है, मन अलबम ने दी याद दिला
फेरे वाली साड़ी का पर, है नहीं अभी तक फाल खुला I
अनिता निहालानी
१४ दिसंबर २०१०
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंवाह.....बहुत सुन्दर भाव.....अतीत की स्मृतियाँ .....भावमयी प्रस्तुति |
बाबा की वह हंसतीं आँखें, माँ का भीगा-भीगा प्यार
जवाब देंहटाएंयाद आ रहा बरसों पहले, छलका था भैया का दुलार
आत्मीय संबंधों को दर्शाती बहुत सुंदर , आभार
जीवन कितना बदल गया है, मन अलबम ने दी याद दिला
जवाब देंहटाएंफेरे वाली साड़ी का पर, है नहीं अभी तक फाल खुला
.....यादें कभी मिटती नहीं .... बहुत कुछ याद आ जाता है पन्नों का पलटने पर .....बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बाबा की वह हंसतीं आँखें, माँ का भीगा-भीगा प्यार
जवाब देंहटाएंयाद आ रहा बरसों पहले, छलका था भैया का दुलार I
जीवन कितना बदल गया है, मन अलबम ने दी याद दिला
फेरे वाली साड़ी का पर, है नहीं अभी तक फाल खुला I
यह क्षण लड़कियों के जीवन में आते हैं और शायद वो ऐसा ही महसूस करती हैं ...बहुत भाव पूर्ण रचना