गुरुवार, दिसंबर 30

देखो उसने पुनः पुकारा


कोई पल-पल भेज संदेसे
देता आमन्त्रण घर आओ,
कब तक यहाँ वहाँ भटकोगे
मस्त हो रहो, झूमो, गाओ !

कभी लुभाता सुना रागिनी
कभी ज्योति की पाती भेजे,
पुलक किरण बन अनजानी सी
कण-कण तन, मन का सहेजे !

कभी मौन हो गहन शून्य सा
विस्तृत हो फैले अम्बर सा,
वह अनन्तानन्त हृदय को
हर लेता सुंदर मंजर सा !

स्मृति चाशनी घुलती जाये  
भीग उठे उर अंतर सारा,
पोर-पोर में हुआ प्रकम्पन
देखो, उसने पुनः पुकारा !

झर-झर झरता वह उजास सा
बरसे हिमकण के फाहों सा,
बहता बन कर गंगधार फिर
महके चन्दन की राहों सा !

कोई अपना आस लगाये
आतुर है हम कब घर जाएँ,
छोड़ के रोना और सिसकना
सँग हो उसके बस मुस्काएं !  

अनिता निहालानी
३० दिसंबर २०१०  

20 टिप्‍पणियां:

  1. कभी मौन हो गहन शून्य सा
    विस्तृत हो फैले अम्बर सा,
    वह अनन्तानन्त हृदय को
    हर लेता सुंदर मंजर सा !

    भावमय करते शब्‍द ...।

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  2. कोई अपना आस लगाये
    आतुर है हम कब घर जाएँ,
    छोड़ के रोना और सिसकना
    सँग हो उसके बस मुस्काएं !

    बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति. नववर्ष के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.

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  3. उस घर का आमंत्रण देने वाली तुम्हारी इस कविता ने तो हमे उस घर की झलक भी दिखला दी,कैसा सजीव वर्णन किया है उसकी महिमा का.---स्मृति चाशनी घुलती जाये भीग उठे उर अंतर सारा, पोर-पोर में हुआ प्रकम्पन देखो, उसने पुनः पुकारा !
    झर-झर झरता वह उजास सा बरसे हिमकण के फाहों सा,बहता बन कर गंगधार फिर महके चन्दन की राहों सा !

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  4. बहुत सुन्दर, नव वर्ष की शुभकामना!

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  5. दिल को छूने वाली एक खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

    अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को भी सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

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  6. अनीता जी,

    हमेशा की तरह सदा नूतन हैं आपकी पोस्ट .....बहुत सुन्दर .......जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया.......लगता है आपने ब्लॉग को पूरा और ध्यान से नहीं पढ़ा.......नहीं तो आपको ये रचनाकार के नाम की शिकायत नहीं होती........आप भी औरों की तरह नामों में उलझी हैं.....अजी शब्द भी किसी के हुए हैं क्या.....नामों में क्या रखा है.......मेरे उस ब्लॉग पर सिर्फ जज्बातों की अहमियत है वो दहलीज़ नामों से परे है......

    नववर्ष की ढेरों शुभकामनाओं के साथ|

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  7. कोई अपना आस लगाये
    आतुर है हम कब घर जाएँ,
    छोड़ के रोना और सिसकना
    सँग हो उसके बस मुस्काएं !

    kitni pyari abhivyakti hai aapki...
    hame bhi ek halki si muskan aa gayee..:)

    pahlee baar aapke blog pe aaya, ab barabar aana hoga...:)

    nav varsh ki shubhkamnayen...

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  8. आपके शब्दों का तालमेल सच मै कमाल का है दोस्त एसे शब्दों का ताना बाना बुनना सबके बस की बात नहीं !
    बहुत खुबसूरत रचना !

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  9. आपकी लिखी रचना सोमवार 19 दिसंबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  10. झर-झर झरता वह उजास सा
    बरसे हिमकण के फाहों सा,
    बहता बन कर गंगधार फिर
    महके चन्दन की राहों सा !//
    कमाल का शब्द संयोजन प्रिय अनीता जी।आपका लेखन सुकून भरा है।🙏

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  11. कोई अपना आस लगाये
    आतुर है हम कब घर जाएँ,
    छोड़ के रोना और सिसकना
    सँग हो उसके बस मुस्काएं ---- इससे सुन्दर और क्या चाह हो सकती है भला!... सुन्दर रचना।

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  12. कोई अपना आस लगाये
    आतुर है हम कब घर जाएँ,
    छोड़ के रोना और सिसकना
    सँग हो उसके बस मुस्काएं !
    वाह!!!!
    हमेशा की तरह अद्भुत ।

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