रविवार, जनवरी 22

वह और हम


वह और हम

जब परमात्मा हमारे द्वार पर खड़ा होता है
हम नजरें झुकाए भीतर उसे पत्र लिख रहे होते हैं
भोर की पहली किरण के साथ हर सुबह जब
वह हमें जगाने आता है
करवट बदल कर हम मुँह ढक के सो जाते हैं
जब किसी के अधरों से कोई सूत्र बन कर
वह कानों तक आता है हमारे,
हम कंधे उचका कर कह देते हैं, अभी जल्दी क्या है
सोचेंगे आपकी बात पर फिर कभी
वह दस्तक देता है अनेकों बार
कभी सुख कभी दुःख की थपकी लगाकर
हमने उसकी ओर न देखने की कसम खाली हो जैसे
नजरें चुराते निकल जाते हैं....
प्रीति भोज में पेट भर जाने पर वह टोकता है भीतर से
अनसुना कर उसे नई प्लेट में
बस एक मिठाई और परोस लेते हैं हम
परमात्मा भी थकता नहीं
वह बुलाए ही जायेगा...
हम भी कुछ कम नहीं...
पर जीत तो उसकी ही होगी
आखिर वह हमारा बाप है...

9 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सच.कभी तो हमे अक्ल आयेगी.

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  2. वाह्……………बिल्कुल सही बात कही है।

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  3. इंसान के बस में हो तो वो तो मौत को भी ऐसे ही बोले ... पर परमात्मा सब जानता है ...

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  4. वाह....अनीता जी...
    अदभुद रचना..सरल दिखती है...मगर कितने जटिल अर्थ लिए है...

    सादर.

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  5. ha.ha.ha.....kab tak nahi sunenge....zindgi ki kisi padaav par to usi ki sunni padegi.....satyam shivam sundram ki tarah hai aapki ye rachna.

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  6. सच्चाई यही है आखिर में जीत तो उसकी ही होगी... गहन भाव

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  7. परमात्मा भी थकता नहीं
    वह बुलाए ही जायेगा...
    हम भी कुछ कम नहीं...
    पर जीत तो उसकी ही होगी
    आखिर वह हमारा बाप है...
    ..bilkul sach kaha aapne...

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  8. आदमी स्वयं को तो धोखा में रखता ही है , परमात्मा को भी नहीं छोड़ता है..

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