सोमवार, मई 4

है भला वह कौन

है भला वह कौन 


वह नीलमणि सा प्रखर मनहर 
गुंजित करता किरणों के स्वर,
शब्दों से यह संसार रचा 
स्वयं मुस्काये, न खुलें अधर !

नित सिक्त करे, झरता झर-झर 
मूर्तिमान सौंदर्य सा वही, 
उल्लास निष्कपट अंतर में 
ज्यों निर्मल सुख की धार बही !

वह पल भर झलक दिखाता है 
फिर उसकी यादों के उपवन, 
सदियों तक मन को बहला दें 
युग-युग तक उनकी ही धड़कन ! 

वह एक नरम कोमल धागा 
जग मोती जिसमें गुँथा हुआ,
सृष्टि या प्रलय घटते निशदिन 
उसका आकर न अशेष हुआ 

उसको ही गाया मीरा ने 
रसखान, सूर नित आराधें,
भारत भूमि का पुहुप पावन
उसकी सुवास से घट भरते !

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर।
    प्रणाम है जगत नियन्ता को।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन लेखन शैली व उत्कृष्ट सृजन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार इस सुंदर प्रतिक्रिया हेतु, आपको भी शुभकामनायें !

      हटाएं