लहरों से थपकी देता है
कोई सुख का सागर बनकर
लहरों से थपकी देता है,
हौले-हौले से नौका को
मंजिल की झलकी देता है !
बरसे जाता दिवस रात्रि वह
मेघा लेकिन नजर न आये,
टप टप टिप टिप के मद्धिम स्वर
मानो दूर कहीं गुंजाये !
कोई ओढ़ा देता कोमल
प्रज्ज्वलित आभा का आवरण,
सुमिरन अपना आप दिलाता
पलकों में भर दे सुजागरण !
सूक्ष्म पवन से और गगन से
नहीं पकड़ में समाता भाव,
होकर भी ज्यों नहीं हुआ है
हरे लेता है सभी अभाव !
जाने कैसी कला जानता
भावों से मन माटी भीगे,
धड़कन उर की राग सुनाये
भरे श्वास में सुरभि कहीं से !
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शास्त्री जी !
हटाएंवाह !बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति आदरणीय दीदी.
जवाब देंहटाएंसादर
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत खूबसूरत सृजन👌👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुधा जी !
हटाएंभगवत्कृपा का साक्षात्कार कराती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम मीना जी !
हटाएंअहा ! नमन आपको ।
जवाब देंहटाएंनमन उस अनाम को !
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