शुक्रवार, मई 8

भोर में


भोर में 


जब कूकती है कोकिल अमराई में 
तो मन का कमल खिलने लगता है, 
शीतल मन्द पवन की छुअन 
सहला जाती है हौले से 
हाँ, शायद उस स्पर्श  के द्वारा 
वही कोई सन्देश भेजता है ! 
दूर नारंगी रग का वृत्त 
जब रंग  रहा होता है 
 क्षितिज को 
तो मन के सागर में  
मानो नृत्य कर रही हों 
लहरों का आंदोलन यूँ लगता है !
हर सुबह कितनी अलग होती है 
जो कण-कण को प्रतिदिन 
 जीने के लिए अमृत से भर देती है 
तभी कहते हैं इसे अमृत बेला  !
अगर भोर की मासूमियत नहीं देखी तो 
दोपहर की चिलचिलाती धूप से 
सीधा वास्ता पड़ेगा 
और सहना कठिन होगा, बन्धु ! उसे 
मोर की केयाँ और 
मंदिरों से आती घण्टियों के स्वर 
सजा देते हैं भोर को कुछ और !

5 टिप्‍पणियां:

  1. भोर का मनभावन चित्रण।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. जो कण-कण को प्रतिदिन
    जीने के लिए अमृत से भर देती है
    तभी कहते हैं इसे अमृत बेला !

    भावपूर्ण अभिव्यक्ति अनीता जी
    मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं
    https://kaminisinha.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं