गुरुवार, मई 7

अप्प दीपो भव

अप्प दीपो भव 


तुम वही हो !
बुद्ध के अमोघ शब्द हैं ये 
हमें मानने का जी चाहता है 
वही दीप, वही प्रकाश 
जो शाश्वत है, आनंद से भर देता है
मुक्त और अभय कर... ले जाता है,
देह की सीमाओं से परे !
नाता मन से भी टूट जाता है 
तुम साक्षी बन जाते हो दोनों के 
बुद्ध कहते ही अनंत का स्मरण हो आता है 
निर्भयता साक्षी ही अनुभव कर सकता है 
मन नहीं 
देह अब साधन है साध्य नहीं 
मन अब उपकरण है प्राप्य नहीं 
विचार अब करने की नहीं दर्शन की वस्तु है 
स्वामी सेवक का काम नहीं करता 
उस पर नजर भर रखता है 
ताकि वह पथ से भटके नहीं 
चिन्तन करना नहीं है, बुद्धि कैसा चिंतन करती है 
यह जानना भर है 
ध्यान करना नहीं स्वयं हो जाना है 
तुम कुछ भी रहो 
जाने जाओ किसी भी नाम से 
बुद्ध कहते हैं 
तुम वही हो ! 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर।
    बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामंनाएँ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बेहतरीन! बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।

    सादर

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    1. आपको भी बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनायें ! आभार !

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