शनिवार, मई 16

शब्द बीज


शब्द बीज

भीतर कहीं शब्दों के बीज गिरे थे 
कुछ प्रिय और कुछ अप्रिय शब्दों के बीज 
जिनसे उगते रहते हैं नए- नए शब्द 
फिर वे बुन लेते हैं एक अदृश्य जाल
संस्कृति और सभ्यता ने सौंपे कुछ शब्द 
माता-पिता, समाज, किताबों से मिले 
चन्द भारी शब्द बो दिए जाते हैं 
बालक के मन में 
जीवन भर जिनकी फसल काटता रहता है वह
भाषा साधन है तो उसका दुरुपयोग भी बहुत हुआ है 
शब्दों ने मानव की आत्मा को ढक लिया है 
वह प्रकट होना चाहती है 
पर कोई न कोई पहरे पर खड़ा है 
जीवन हर बार किसी शब्द से टकराकर 
औंधे मुँह पड़ा  है !

4 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    17/05/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत आभार ! 'पांच लिंकों का आनंद' खुल नहीं रहा है

    जवाब देंहटाएं
  3. Wow mam, this is fantastic and you know what this page is now my bookmark. Thanks for providing this content. - best laptops

    जवाब देंहटाएं