सोमवार, जून 22

घटे जागरण

घटे जागरण 

कंस ने द्वेष किया कृष्ण से 
फिर उसी को मन में बसाया 
जिस पर भी रोष किया मानव ने 
अंतर को उसी का घर बनाया !
जिस मन की गहराई में 
सारा ब्रह्मांड बसता है 
पादप, पंछी, पशु, गोलोक तक का विस्तार है 
चाहे यदि जो अनंत की 
उड़ान भर सकता है 
वह व्यर्थ ही क्या नहीं 
छोटा सा अहंकार लिए फिरता है !
एक सूक्ष्म विषाणु जिसका अस्त्र बना 
संहारक है जो बढ़ते हुए लोभ का 
जग को गहरी नींद से जगाया है 
प्रकृति पर होते अत्याचार 
के प्रति चेताया है 
गणेश को पूजने वाला समाज 
बना है हाथी का हत्यारा 
बेदखल कर पशुओं को 
उनके आश्रयों को हथिया लिया 
किया गया है विवश भीतर झाँकने को 
यदि जीवन ही न रहा तो 
क्या रह जायेगा उसे मांगने को !
सुख आशा और दुःख निराशा में 
कोई चुनाव नहीं है यहाँ 
एक के साथ दूजा बिन मांगे चला आता 
काश ! यह अटूट सत्य नजर आ जाता ! 


7 टिप्‍पणियां:

  1. जब स्वार्थ की माया रहती है चारों और .... अपने से आगे कोई दीखता ण हो ... तो मानव भोगी बन जाता है सब कुछ भूल जाता है ... काश पे पर्दा उठे ...

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह और सिर्फ वाह अनीता जी | सुंदर लेखन और भावपूर्ण विषय | सचमुच मन यहाँ विश्राम पाना चाहता है | सादर

    जवाब देंहटाएं