गुरुवार, अक्तूबर 1

मिलन अधूरा उसे न भाए

मिलन अधूरा उसे न भाए

जन्मों की मृदु प्रीत पुरानी 

कुछ भूली सी अनजानी कुछ, 

उस प्रियतम को जरा पुकारो  

 दौड़ा आता हर पुकार पर !


निज सुख खातिर चाह उठी तो  

मिलन नहीं वह  केवल  है भ्रम,

अहंकार उर  शेष रहा तो 

कहाँ  रहे वैरागी प्रियतम !


उसे चाहता मन वैसे यदि  

जैसे  जग का हर सुख चाहे, 

वह तो पूरा ही मिलता है 

मिलन अधूरा उसे न भाए !


मन अंतर  चरणों पर अर्पित 

बुद्धि इसी पर होती गर्वित, 

अहंकार भी चढ़ा प्रेम का 

दूरी कभी न होती खंडित !


सब विस्मृत बस सुमिरन उसका 

वही-वही बस रह जाए जब, 

उससे पूरा मिलन घटेगा 

है यही प्रीत का परम सबब !


 

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 01 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. उस परम प्रियतम को पुकार कर ही परम शांति मिलती है जो इस जगत से नहीं मिलती । अति सुंदर ।

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  3. सब विस्मृत बस सुमिरन उसका
    वही-वही बस रह जाए जब,
    उससे पूरा मिलन घटेगा
    है यही प्रीत का परम सबब ',,,,।।।बहुत सुंदर भक्ति मय रचना

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  4. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-10-2020) को "पंथ होने दो अपरिचित" (चर्चा अंक-3842) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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  5. जब तू है तब मैं नहीं ,जब मैं हूँ तू नाहिं ....

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  6. आध्यात्म और दर्शन से भरी रचना ...वाह अनीता जी क्या खूब ल‍िखा क‍ि
    उसे चाहता मन वैसे यदि

    जैसे जग का हर सुख चाहे,

    वह तो पूरा ही मिलता है

    मिलन अधूरा उसे न भाए !

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