शुक्रवार, अक्तूबर 29

कौन है वह

कौन है वह

वह इक एल्केमिस्ट विलक्षण !


अहंकार लोहे सा भारी

पिघला उसको कुंदन करता,

ओंकार गुंजन से दिल का

कोना-कोना मंडित करता !


इक निराला कैटेलिस्ट भी !


होने से जिसके सब होता

कुछ करे न सप्रयास वह,

अनायास ही कृपा बरसती

मन ख़ुद  ही परिवर्तित होता !


सबसे बड़ा पारखी भी वह !


आरपार सब दिल का परखे

झूठी आशा नहीं दिलाता,

कितना पानी चढ़ा हृदय पर 

सच्चे मोती सा चमकाता !


गोता खोरी सीखें उससे !


मन सागर में उतरे  गहरे

मणियों, रतनों को फिर पाएँ,

भीतर के प्रांगण को झिलमिल

ज्योति बिन्दुओं से दमकाएं !


एक यात्री दूर देश का !


वाहन बिना सृष्टि में घूमे

अम्बर में डेरा है उसका,

सूर्य चन्द्र हैं सजे थाल में

नित्य वन्दन होता है जिसका !


कुशल है माली बहुत सुजान !


चिदाकाश का बीज गिराता

कृपा वारि से उसे सींचता,

खाद ज्ञान की प्रेम ऊष्मा

देकर पौधा खूब बढ़ाता !


वीणा वादक हृदय वाद्य का !


अंतर्मन को झंकृत करता

देह को चिन्मय और उर्जित,

भाव पुष्प सम सुरभित होते

मेधा  जिसको देख चमत्कृत !


अनिता निहालानी
२९ अक्तूबर २०१०    
   



7 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar varnan... abhibhoot kar dene waali rachna... man ho raha tha ki yah rachna khatam hi na ho...

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  2. अनीता जी,

    जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का शुक्रगुज़ार हूँ......क्या कहूँ आपकी कविता कुछ कहने लायक रखती ही नहीं है......जैसे सीधे अन्तःस्थल में प्रवेश कर जाती है |

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  3. अंतर्मन को झंकृत करता
    देह को चिन्मय और उर्जित
    भाव पुष्प सम सुरभित होते
    बुद्धि जिसको देख चमत्कृत

    झंकृत-पुलकित शब्द...मन उज्जवल हुआ.

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  4. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया !

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