सोमवार, अक्तूबर 10

क्या दमन ही आज की पहचान है


क्या दमन ही आज की पहचान है


मूल्य बदले ब्रांड में बिक रहा इंसान है
क्या दमन ही आज की पहचान है !

सर्वमान्य सच बनी है, मनुज की आधीनता
मुक्त होना दूर अब तो, सज रही है दासता

जल रहा जग, लोभियों का यह महाशमशान है
क्या दमन ही आज की पहचान है !

आधुनिक होना शरम को, ताक पर देना है रख
भागते रहना सुबह से शाम तक, फिर बेसबब

क्रूर हिंसा, वासना को पोषणा अब शान है
क्या दमन ही आज की पहचान है !

मौन हैं जिनके सहारे, सौंप डालीं कश्तियाँ
सिर झुकाए झेलतीं हैं, दर्द सारी बस्तियां

तोड़ता दम लोक का हर आखिरी निशान है
क्या दमन ही आज की पहचान है !

तोड़ डाले हौसले व हक सभी प्रतिरोध के
रौंधकर सपने, किये हैं मूक स्वर आक्रोश के

एक अनदेखी दिशा से बढ़ रहा तूफान है  
क्या दमन ही आज की पहचान है !

8 टिप्‍पणियां:

  1. तोड़ डाले हौसले व हक सभी प्रतिरोध के
    रौंधकर सपने, किये हैं मूक स्वर आक्रोश के....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  2. तोड़ डाले हौसले व हक सभी प्रतिरोध के--

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई स्वीकार करें ||

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  3. सोचने को मजबूर करती कविता।

    सादर

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  4. मौन हैं जिनके सहारे, सौंप डालीं कश्तियाँ
    सिर झुकाए झेलतीं हैं, दर्द सारी बस्तियां

    ...बहुत सटीक प्रस्तुति..आभार

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  5. एक अनदेखी दिशा से बढ़ रहा तूफान है
    क्या दमन ही आज की पहचान है !

    इस बढते तूफ़ान को अभी से नियंत्रित करने की आवश्यकता है. अन्यथा परिणाम घातक हो सकते हैं. आम जनता भी अब सियासत की चालें समझने लगी है. सुंदर सामायिक कविता जन जागरण की मुहिम के साथ. शुभकामनायें.

    अनीता जी बहुत बहुत धन्यबाद मेरी कविता "बतकही" को सराहने और पसंद करने और सुंदर टिप्पणी के लिये. आप अवश्य मेरी कविता को अपने फेसबूक अकाउंट में साझा कर सकती हैं. इस बहाने चंद और लोगों तक यह कविता पहुँच सकेगी और उनका आशीर्वाद मिल सकेगा.

    धन्यबाद.

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  6. आधुनिक होना शरम को, ताक पर देना है रख
    भागते रहना सुबह से शाम तक, फिर बेसबब
    समय बदल रहा है तो शरम को ताक पर रख कर ही तो हम आधुनिक हुए जाते हैं।

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