बुधवार, जनवरी 11

आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं


आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं

माँ को सम्मुख जब न पाए
शिशु का कोमल उर घबराए,
उसके नन्हें से कपोल पर
बूंदों की सुछवि गढ़ते हैं

आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !

प्रिय से दूरी सह न पाए
व्यथा नहीं भीतर रह पाए ,
जार-जार बहे थे आँसू
कॉपी के पन्ने कहते हैं

आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !

आँसू जब परिपक्व हो गए
अपना खारापन खो गए,
विरह भाव में पगे हुए से
शीतलता भीतर भरते हैं

आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !

कभी बहे थे जो रोष में
दुःख, विषाद या किसी शोक में,
वही आज पर दुःख कातर हो
समानुभूति में बढ़ते हैं

आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !


12 टिप्‍पणियां:

  1. कभी बहे थे जो रोष में
    दुःख, विषाद या किसी शोक में,
    वही आज पर दुःख कातर हो
    समानुभूति में बढ़ते हैं

    आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !
    गहरी बात .........

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  2. बहुत सुन्दर अनीता जी...
    सच है..आँसू दर्पण हैं मन की भावनाओं का...
    हर बात पर बहते हैं..
    सीढ़ी चढ़ते हैं...
    सादर.

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  3. आँसू जब परिपक्व हो गए
    अपना खारापन खो गए,
    विरह भाव में पगे हुए से
    शीतलता भीतर भरते हैं ...

    आंसू हर तरह से अपना काम करते हैं ... बहुत खूब ..

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  4. आँसू जब परिपक्व हो गए
    अपना खारापन खो गए,
    विरह भाव में पगे हुए से
    शीतलता भीतर भरते हैं

    सुन्दर रचना.....दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना |

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  5. सुन्दर एवं सशक्त अभिव्यक्ति .

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  6. न सिर्फ़ शीर्षक बल्कि उसमें निहित बिम्ब को जब मन की आंखों से देख रहा था तो लगा कि सच आंसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं।

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  7. मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

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  8. समानुभूति में बढ़ते हैं
    आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !
    बिलकुल सही कहा आपने... गहन भाव

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  9. आँसू जब परिपक्व हो गए
    अपना खारापन खो गए,
    विरह भाव में पगे हुए से
    शीतलता भीतर भरते हैं


    आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !

    सही कहा....
    आंसुओं में भी upgrading होनी ही चाहिए...!
    जब उन्नति..पदोन्नति हर इंसान,हर भाव और ज़ज्बात की होती है तो आंसुओं की क्यूँ नहीं..!!
    बहुत सुन्दर व भावपूर्ण..!!

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  10. सदैव की तरह एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति |

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  11. अनीता जी

    आँसू जब परिपक्व हो गए
    अपना खारापन खो गए,
    विरह भाव में पगे हुए से
    शीतलता भीतर भरते हैं

    आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !

    कभी बहे थे जो रोष में
    दुःख, विषाद या किसी शोक में,
    वही आज पर दुःख कातर हो
    समानुभूति में बढ़ते हैं

    आँसू भी सीढ़ी चढ़ते हैं !

    आंसुओं का उत्थान का सटीक वर्णन किया है आपने ... यही उत्थान हमारे विकास का परिचायक है.....

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  12. रश्मिजी, दिगम्बरजी, विद्याजी, इमरान, पूनम जी, संध्या जी, अमृता जी, सुषमा जी, मनोज जी व वीरू भाई जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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