सोमवार, दिसंबर 5

एक कोमल गीत जैसे



एक कोमल गीत जैसे 


जिंदगी हर पल नयी है 
नींव खुद हमने गढ़ी थी, 
जिन पलों की कल किसी दिन 
आज वह सम्मुख खड़ी है !

सुप्त था मन होश न था 
स्वप्न देखा बेखुदी में, 
जब मिला साकार होकर 
नींद रातों की उड़ी है !

सुखद पल जो भी  मिले हैं 
खुशनुमा से सिलसिले हैं,
ख्वाब बन कर  जो सजे थे 
उन्हीं लम्हों की लड़ी है !

एक कोमल गीत जैसे 
था छुपा अंतर कवि के 
ले रहा आकार सुंदर 
उसी रचना की कड़ी है !



3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 06 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपकी कलम को

    जवाब देंहटाएं