शुक्रवार, अगस्त 12

जानना

जानना 


लहर कहाँ जानती है 

सागर कितना गहरा है 

ऊपर ही ऊपर बनती व बिगड़ती 

मान लेती है यही उसकी नियति 

सूर्य रश्मियाँ नहीं जानतीं 

अग्नि का एक महासागर है सूरज 

कोई नहीं जानता 

ब्रह्मांडों की संख्या और सृष्टि का आदि-अंत 

हम जानने की प्रक्रिया भर हैं 

जानने का प्रयास ही मानव की संज्ञा है 

जो जानता है जितना अधिक 

उसके लिए उतना अधिक अजाना रह जाता है 

 जानता है जो कम

उसके लिए अल्प ही अज्ञात रहता है 

यही विरोधाभास 

जीवन का सौंदर्य है और यही रहस्य ! 





5 टिप्‍पणियां:

  1. जो जानता है जितना अधिक

    उसके लिए उतना अधिक अजाना रह जाता है

    जानता है जो कम

    उसके लिए अल्प ही अज्ञात रहता है

    यही विरोधाभास

    जीवन का सौंदर्य है और यही रहस्य !

    केनोपनिषद की पंक्ति " यस्यामतम मतमतस्य मतम यस्य न वेद सः " को व्यक्त करती हुई।

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  2. लहर कहाँ जानती है 

    सागर कितना गहरा है 

    ऊपर ही ऊपर बनती व बिगड़ती 

    मान लेती है यही उसकी नियति 


    गहरे सवाल छुपे है इन सरल पंक्तियों में।
    बहुत सुंदर रचना

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  3. उसके लिए उतना अधिक अजाना रह जाता है

    जानता है जो कम

    उसके लिए अल्प ही अज्ञात रहता है

    यही विरोधाभास

    जीवन का सौंदर्य है और यही रहस्य !
    जानने और न जानने के विरोधाभाष को अभिव्यक्ति करती उम्दा रचना आदरणीय ।

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