शुक्रवार, अक्तूबर 22

मन छोटा सा

मन छोटा सा

चाह मान की जिसे जिलाए
वह है अपना छोटा सा तन,
कुछ पाने की आस लगाये
वह है अपना छोटा सा मन !

अमन हुआ जब मुक्त हो गया
त्यागी तृष्णा रिक्त हो गया,
लाखों हैं मेधा में बढ़ कर
जाना जब तब सिक्त हो गया !

मान की आशा ले डूबती
मदकी नैया सदा टूटती,
ख़ुदसे ही आगे जाना है
दुइ की गागर सदा फूटती !

सहज रहें जैसे हैं बादल
पंछी, पुष्प, चाँद औ'तारे,
भीतर जाकर उसको देखें
जिससे निकले हैं स्वर सारे !


अनिता निहालानी
२२ अक्तूबर २०१०

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सहज रहें जैसे हैं बादल
    पंछी, पुष्प, चाँद और तारे
    भीतर जाकर उसको देखें
    जिससे निकले हैं स्वर सारे !
    सुन्दर सन्देश देती रचना के लिये बधाई। बहुत अच्छा लगा आपका ब्लाग।

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  2. आपकी सभी कविताओ को पढ़ा . सारी कवितायेँ बहुत अच्छी हैं . पढ़ना अच्छा लगा . बधाई .........

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  3. अनीता जी,

    हर बार की तरह बहुत सुन्दर रचना.........

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  4. 'rosa' film ke geet 'dil hai chhota sa'ke aage aapki kavita ka saar jod du to hoga 'badi- badi aasha'. achchi lagi.

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  5. स्वयं से ही आगे जाना है
    दुइ की गागर सदा फूटती !

    सत्वचन...सही सीख देती कविता है, धन्यवाद!

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  6. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
    कभी 'आदत.. मुस्कुराने की' पर भी पधारें !!
    new post par
    .............मेरी प्यारी बहना ?

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  7. आप सब का आभार व ब्लॉग पर स्वागत !

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